Saturday, December 3, 2011

'जिन्दगी का सफ़र'

        
तनहा कटता रहा, जिन्दगी का सफ़र!
अपना कोई हमारा, हो न सका!!
खोना चाह जिसे,उसे खो न सका!
पाना जो कुछ भी चाहा,कभी पा न सका!!
जुल्म सहता रहा,उनकी हंस कर के मै!
य़ू ही कुढ़ता रहा,फिर भी रो न सका!!
अपनी खुशियों को, उन पर लुटाता रहा!
दिल कि माला में, उनको पीरों न सका!!
पास आना तो चाहा,हर हमेशा मगर!
हमसफ़र उनका, मै हो न सका!!
टुटा हूँ  अब इस कदर ,कि क्या कहूँ!
हाल ये भी,उनको रुला न सका!!
भूलना तो उनको,दिल से चाहा मगर!
'मीत' खयालो से उनको,भुला न सका!!
- राजीव रंजन मिश्र

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