Monday, November 7, 2011

है सच्चा शाहंशाह वही

प्यार सभी को है अपनों से,
                     अपने शोहरत की है सबको चाह!
जीवन के पथ पर चलकर अपने,
                     सबने पाया है समुचित राह!!
दुनिया वालों की राह रोक कर,
                     सब अपना राह बनाते है!
लोगों से सब कुछ छीन- झपट कर,
                     अपना घर-बार सजाते है!!
कईयों का घर-द्वार तोरकर,
                     अपना महल बनाते है!
गैरों का दिल  बाग़ तोरकर,
                     वो अपना चमन खिलते है!!
ऐ नादाँ,जरा सोचो,
                     पशु पक्छी भी अपना पेट चलाते हैं!
इतना तो कम से कम ख्याल करो,
                      हम ही मानव क्यों कहलाते है!!
अपनी राहों के साथ साथ जो,
                      गैरों का राह बनाते है!
अपने धन को बाँट-बाँट कर,
                      जो निर्धन को धनी बनाते है!!
अपने भूख की परवाह छोरकर,
                      जो भूखों की भूख मिटाते हैं!
अपने गुलशन में फूल खीलाकर,
                      जो सारा संसार सजाते है!!
जीवन को आपने आदर्श बनाकर जो,
                      सारे जग को राह बतलाते!
अरे नादान!जरा सोचो,
                      क्या वो ही राम और कृष्ण नहीं कहलाते?


दुनियां की ख़ुशी की परवाह छोर,जिस फ़रिश्ते को कोई  चाह नहीं!
ईश्वर की गरिमामय सत्ता का,है सच्चा शाहंशाह वही!!
---राजीव रंजन मिश्रा
   २२/०६/१९९५

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