Monday, November 7, 2011

ये राज भला मै खोलू क्या!

ऐ दोस्त! मेरे पुछु किस से,और भला बतलाऊ क्या ?
जीवन के इस अंध दौर में,कब, कैसे, किसको, कितना है मिला!
जब सोच-सोच थक हार के मै,बेहद कुंठित  हो जाता हू!
तब निज को संकोचित कर,नित रोज यही समझाता हूँ!
संभव हो जहा तक जीवन में,पर दोष कभी ना कदापि करु!
नित विवेक और संयम  से,निज राह पर बस मै चलता चलू!
ना छीन  झपट कर औरो का,जीवन में अपना पेट भरू!
क्यों सोच ग्रसित मै रहता हू,किस किस को सफाई देता फिरूँ!
ऐ काश! कि ये आसां होता,और मै ऐसा ही कर पाता! 
खुद में मशगुल  रहा करता,औरो  से मुझको लेना क्या!
क्षण-प्रति क्षण विचलित करता है,लोगों ने जो दिया है सिला!
किस दर्द में जीवन जीता हूँ,,ये राज भला मै खोलू क्या!
---राजीव रंजन मिश्रा
०३.१०.२०११

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