Saturday, November 12, 2011


दूर  जाकर भी मै दूर  जा न सका,
तेरी यादों को मै भुला न सका!
तू ने तो दिल के कर दिए  टुकऱे,
तेरी तस्वीर मै जला न सका!
घर में कुछ इस कदर  अँधेरा था कि,
खुद को मै रौशनी में ला न सका!
आंसुओ का भी जिन्दगी में कभी,
बोझ पलकों पे मै उठा न सका!
यूँ तो क्या रह  गया है आँखों में,
तेरा चेहरा मगर गँवा न सका!
पतझर में भी हँसना चाहा सदा,
बहार-ऐ-महफ़िल में भी मुस्कुरा न सका!
जीत लेता  जिंदगी के हर एक जंग को,
अपने दिल को ही मै हरा न सका!
उसको चाहा बऱी  ख़ामोशी से,
'मीत' जिंदगी के सफ़र का बना न सका!
-----राजीव रंजन मिश्रा

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